Exam of excellence in values of humanity, morality & ethics.

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त्याज्य बुराईयाँ

जैसा कि सजनों हम सब जानते हैं कि कलुकाल जाने वाला है और सतवस्तु आने वाली है। इस तथ्य के दृष्टिगत ही सजनों सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ के माध्यम से, सजन श्री शहनशाह हनुमान जी हमें बार-बार, कई तरीकों से, कलुकाल के मंदे भाव-स्वभाव छोड़ व सतयुग के उच्च भाव-स्वभाव अपना कर, सतवस्तु में आने के प्रति सचेत कर रहे हैं और विधिवत् अपना आत्मनिरीक्षण कर, अंतर्निहित पनपने वाले नकारात्मक वातावरण को परख, उसे परिपूर्णत: सकारात्मकता में तबदील करने के लिए कह रहे हैं ताकि हम चरित्रवान बन सतवस्तु में प्रवेश करने के काबिल बन सकें।

सजनों अपने परमपिता के वचनानुसार सुनिश्चित रूप से ऐसा सुयोग्य मानव बनने हेतु नि:संदेह हमें अर्थ सहित अंतर्निहित पनपने वाले उन निषेधात्मक भाव-स्वभावों को जानना होगा जिनको अपनाने पर हमारे अन्दर नकारात्मकता का वातावरण पनपता है और हम तद्नुसार सोचने, बोलने व करने के स्वभाव में ढल, अपने जीवन में कुछ भी सकारात्मक नहीं कर पाते।

सजनों वर्तमान कलुषित वातावरण व भयावह परिस्थितियों के दृष्टिगत तो इस क्रिया को और भी समझदारी से करना आवश्यक है ताकि हम किसी भी कारण, सत्य-धर्म के निष्काम रास्ते से भटक, झूठ-चतुराईयों भरा, अधर्म युक्त रास्ता अपनाने के लिए विवश न हो जाएँ और इस तरह अपने शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य का नाश कर, अपना जीवन चरित्र न बिगाड़ बैठें।

हर मानव को दुराचार छोड़, पुन: सदाचारी बनने हेतु बैहरूनी वृत्ति में अपनाए काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपी विकारों पर फ़तह पा, अन्दरूनी वृत्ति में सम, संतोष, धैर्य, सच्चाई, धर्म जैसे सद्गुणों को धारण करना सुनिश्चित करना होगा और ए विध् अपने मन को सदा परमेश्वर में लीन रखते हुए संकल्प रहित बने रहना होगा ताकि अज्ञान अंधकार से आच्छादित आपका हृदय पुन: प्रकाशित हो उठे और आपको यह बोध हो जाए कि "जेहड़ा मन मन्दिर प्रकाश, ओही असलीयत ब्रह्म स्वरूप है अपना आप"। सजनों जानो ऐसा पराक्रम दिखाने पर ही आप शारीरिक स्वभाव छोड़ व आत्मीयता से भरपूर स्वभाव अपना सत्-वादी इंसान बन इस जगत में मानव धर्म का झंड़ा बुलंद कर पाओगे।

सजनों हम सब भूले-भटके इंसान भी ऐसे सुमतिवान बन परमात्मा के हर हुक्म का प्रसन्नचित्तता से पालन करते हुए, उनके सपुत्र कहला सकें, इस हेतु आओ सर्वप्रथम  बैहरूनी वृत्ति के जो स्वभाव छोड़ने हैं, उनके विषय में जानते हैं:- 

काम

सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ के अनुसार सजनों जानो सबसे बड़ा विकार है काम, जिसका परिवार है कामना। जानो इन्द्रियों की अपने-अपने विषयों (रूप, रस, शब्द, गंध, स्पर्श) की ओर प्रवृति यानि मन का इनके प्रति झुकाव काम कहलाता है। काम को मनुष्य के मन-मस्तिष्क की अतृप्त क्षुधा माना जाता है। काम का जन्म कामुक इच्छा और कामुक विचारों से होता है। काम मनमाना रूप धारण कर भाव और वृत्ति को अनियंत्रित कर कामातुर बनानेवाला है। काम वेग से व्यक्ति व्याकुल हो स्वेच्छाचारी, स्वार्थी, आलसी व अकर्मण्य हो जाता है। परिणामत: उसके नेत्र चंचल हो जाते हैं, हृदय दहकने (काम की पीड़ा से जलने लगना) लगता है, अरुचि उत्पन्न होने लगती है, नींद, लज्जा, धैर्य, बुद्धि तथा सुख-शांति का समूल नाश हो जाता है। इस प्रकार धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का पुरुषार्थ उसकी पकड़ से छूट जाता है। हमारे साथ सजनों ऐसा न हो इस हेतु कामुक मत बनो यानि आत्मसंयम अपना कर काम पर फतह पाओ और निष्काम हो आत्मतुष्ट हो जाओ।

क्रोध

सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ के अनुसार सजनों कामना पूरी न होने के कारण जब इंसान अपनी सुधबुध खो बैठता है तो इस शरीर रूपी दरख़्त को क्रोध रूपी रोग लग जाता है। क्रोध चित्त का वह तीव्र उद्वेग है जो किसी अभिलाषा या कामना के न पूरा होने पर अथवा किसी अनुचित और हानिकारक कार्य को होते हुए देख कर, उस कष्ट या हानि पहुँचाने वाले अथवा अनुचित कार्य करने वाले के प्रति मन में उत्पन्न हो जाता है।

याद रखो क्रोध से सजन अपना विवेक खो बैठता है। यहाँ तक कि उसे क्रोध के कारणों का भी ज्ञान नहीं होता जिसके फलस्वरूप वह आप और उसके परिवार का हर सदस्य अशांति के वातावरण से अछूता नहीं रहता। फिर तनाव बढ़ता है। एक दूसरे के प्रति भय और निंदा का भाव बनता है और धीरे-धीरे आपसी बातचीत में स्पष्टता समाप्त होती जाती है। हमेशा याद रखो विवेकशील सजन अकारण क्रोध नहीं करता। वह धैर्य शक्ति के प्रयोग से चित्त की स्थिरता और दृढ़ता बनाए रखता है। अत: क्रोधी बनने के स्थान पर समचित्त बनो और अपने मन पर विजय प्राप्त करो।

लोभ

सजनों सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ के अनुसार कामना पूरी न होने पर क्रोध और पूरी हो जाने पर लोभ रूपी विकार मानव को लग जाता है। जानो कुछ वस्तु लेने/पाने की बहुत अधिक और अनुचित इच्छा या उत्कट अभिलाषा को लोभ कहते हैं। यह मन की वह स्थिति है जिसमें सुख/आनन्द देने वाली वस्तु के अभाव की भावना होते ही उसकी प्राप्ति/रक्षा या उसके सान्निध्य की प्रबल इच्छा अन्दर जाग जाती है। इसलिए इसे ऐसा मोहनीय कर्म माना जाता है जिसके कारण मनुष्य किसी पदार्थ को त्याग नहीं सकता अर्थात् यह (लोभ) त्याग, सुख-शांति या स्वच्छन्दता का बाधक होता है।

याद रखो लोभी के मन में सदैव दूसरों के पदार्थ को लेने की कामना बनी रहती है। वह तुच्छ प्रलोभनों के चंगुल में फँस अपना जीवन ईष्र्या, द्वेष, चोरी, ठगी और झूठ के गर्त में धकेल देता है। लोभी पर कोई विश्वास नहीं करता। इस परिणाम के दृष्टिगत सजनों आप कभी भी लोभी मत बनना। इस हेतु स्मरण रखना कि  संतोष अपनाने से लोभ जैसा विकार स्वत: ही दूर हो जाता है

मोह

सजनों मोह लोभ द्वारा उत्पन्न होने वाली भ्रान्ति भी है। इसलिए सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ में कहा गया है "लोभ का दोस्त है मोह", "जब किसी ने लालच दिखाया तो उसके साथ मोह पड़ जाता है। सजनों ईश्वर का ध्यान छोड़कर शरीर तथा सांसारिक वस्तुओं को अपना तथा सब कुछ समझने की बुद्धि मोह कहलाती है।  मोह धोखा है अर्थात असत्य को ही सत्य समझकर स्वीकारना है। यह अज्ञान यानि जड़ता की स्थिति है। यह अंत:करण की दुर्बलता का प्रतीक भी है। यह ख्याल को नश्वरतासे जोड़ता है। मोह में पड़कर इन्सान अनीतियों पर चलना शुरु कर देता है व सच्चाई धर्म को छोड़ देता है। हमारे साथ ऐसा न हो इस हेतु सजनों मोह रूपी फाँसी से बचो। इस हेतु अपने सत्य शाश्वतअविनाशी स्वरूप को जानो और मोह जाल से बचे रहो व मोक्ष प्राप्त करो।

अहंकार

सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ के अनुसार सजनों अहंकार इस शरीर रूपी दरख़त् को लगा हुआ पाँचवां विकार है। अहंकार अंत:करण का एक भेद है जो "मैं हूँ'' या "मैं कहता हूँ'' इस प्रकार की भावना उत्पन्न करता है अर्थात् यह "मैं" और "मेरा" का भाव है। मैं" और "मेरा" का यह भाव जितना गहन और विस्तृत होता जाता है उतना ही अहंकार भी बढ़ता जाता है। इस अहंकार के ही कारण सृष्टि के पदार्थों से अपना संबंध दिखाई पड़ता है और ममत्व पनपता है।

याद रखो अहंवादी जीवन के हर क्षेत्र में अपनी प्रधानता व प्रभुत्व जमाना चाहता है यानि अपनी तानाशाही के बल पर वह अत्याचार, धौंस, मनमानी करने से भी नहीं सकुचाता व दूसरों को हमेशा नीचा दिखाने का यत्न करता है। वह सदैव आत्मप्रशंसा व चापलूसी करने वालों से घिरा रहता है। अहंकारता को कुलनाशक मानते हुए आप ऐसे मत बनो। इस हेतु याद रखो कि आत्मबोध की स्थिति ही अहंकार से बचे रहने का एक-मात्र साधन है। इसलिए कुछ और बनने से पहले आत्मज्ञानी बनो।

 

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