Humanity Olympiad 2k24
Exam of excellence in values of humanity, morality & ethics.

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जीवन खेल

सजनों मानव जीवन एक खेल है। हम अपने जीवन का खेल बिगाड़ न बैठे इस हेतु हमारे लिए बनता है कि हम इस खेल में सुनिश्चित रूप से विजयी होने के लिए सर्वप्रथम अपनी योग्यता और शक्ति पर दृढ़ विश्वास रखते हुए, इस विचित्र कार्य को आत्मसंयम द्वारा यानि अपनी इन्द्रियों और मन को वश में रखते हुए, जोश के स्थान पर होश में बने रहते हुए, खेलने के तौर तरीके सीखें। इस तरह मनोवेगों से मुक्त रह, युक्ति संगत सत्य-धर्म युक्त नीति-नियमों अनुसार पूरी दिलचस्पी में आकर निष्कामता व निपुणता से इस खेल को खेलने की आदत विकसित करें।

सजनों यह जानने के पश्चात्‌ बताओ कि आप इस खेल में जीवन के परम अर्थ को सिद्ध कर जीतना चाहते हो या संसार रूपी माया जाल में फँस कर हारना चाहते हो?

यदि जीतना चाहते हो तो फिर आपको सुनिश्चित रूप से सत्य आत्मिक ज्ञान प्राप्त कर मानवता का सिद्धान्त अपनाना ही होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि मानव धर्म की महानता सर्वोत्तम है। मानवता ही हकीकत में मनुष्य होने की सही पहचान है। मानवता का सिद्धान्त मनुष्यत्व/इन्सानियत का प्रतीक है। अत: याद रखो मानवता है तो मानव है। यदि मानवता नहीं तो दानव है। मानवता में आने हेतु सजनों आपको मानव होने के भाव अनुसार, उन्हीं आदर्शों तथा स्वाभाविक  गुणों, भावनाओं इत्यादि को अपना कर चरित्रवान बनना होगा। चरित्रवान वही कहला सकता है जो सहृदयता, दयालुता आदि स्वाभाविक गुणों से युक्त होकर निष्कामता से लोक-कल्याण के लिए कार्य करता है ताकि मानवों का जीवन अधिक सुखमय हो तथा उनके कष्ट और पीड़ा में कमी आए। याद रखो ऐसा परोपकारी इंसान अपने इस सर्वोच्च कर्त्तव्य की पूर्त्ति हेतु कदाचित्‌ तन-मन-धन से हारकर दानवता नहीं अपनाता अपितु हर परिस्थिति व अवस्था में समरसता से आजीवन सदाचारी बना रहता है।

इस सन्दर्भ में बच्चो, अपने तन-मन को टटोलो। कहीं उसमें नकारात्मक सोच व सांसारिक रोग के कारण दानवीय लक्षण तो नहीं प्रगट हो रहे? सजनों यदि ऐसा है तो समझ लेना यह जीवन हार कर अपयश को प्राप्त करने की बात है। ऐसी दुर्गति किसी की न हो, इस हेतु जानो कि मानवता अपने आप में मानवीय सद्‌गुणों का वह समूह है जिस पर स्थिर रह मनुष्य अपनी मनुष्यता को समुचित ढंग से प्रमाणित कर सकता है। यह ही हक़ीकत में मानवीय गुणों यानि सजन भाव के विकास की सूचक होती है। इस सन्दर्भ में अब ध्यान से सुनो:-

मानवता, हर मानव के हृदय में सदा विद्यमान रहती है और हर विवेकशील मानव अपने मन-वचन-कर्म द्वारा उसको प्रकट करने की सामर्थ्य रखता है ।

मानवता की नींव है--संतोष अर्थात्‌ सदा प्रसन्न रहना और किसी बात की कामना, चिंता व अपेक्षा न करना। इस नींव के मज़बूत होने पर इन्सान अपनी यथार्थ शक्ति को पहचान जाता है और उस धीर पुरुष के अन्दर परिपूर्णता का भाव समरस बना रहता है। तभी तो वह आत्मविश्वासी, सत्‌-वादी व धर्मज्ञ इंसान सच्चाई-धर्म के निष्काम रास्ते पर चलते हुए सबका परोपकार करता है।

मानवता को विकसित करने से अभिप्राय मानवीय संवेदनाओं और मानवीय गुणों के विकास से है।मानवता, मानवीय गुणों के विकास की सूचक है।

मानवता के विकास के लिए व्यक्ति का विवेक सर्वाधिक उत्तरदायी होता है क्योंकि विवेक ही मानवीय तत्वों/गुणों की परख कर बुद्धि को प्रकाशित रखता है। विवेक से ही सद्‌गुणों का संचय होता है।

इससे सजनों स्पष्ट होता है कि कुदरत प्रदत्त विवेक शक्ति के प्रयोग द्वारा ही मानव सद्‌मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। अत: अन्तर्निहित इस शक्ति का इस्तेमाल करना सीखो अन्यथा बुद्धि भ्रमित हो भ्रष्ट हो जायेगी और कोई भी आपको कुमार्ग पर चढ़ा देगा। कुमार्ग पर चढ़ने का अर्थ होगा - माँस-मदिरा, सिगरेट, तम्बाकू आदि जैसे नशीले पदार्थों का सेवन करने की लत में फँस दुर्व्यसनी बनना। याद रखो इस मनमाने कामना युक्त व्यवहार में तन-मन के लिप्त होने का अर्थ होता है शारीरिक, मानसिक रोग। इन रोगों के वशीभूत हुआ इन्सान निजी रोकथाम हेतु अपना धन भी हार बैठता है। इस तरह अपना सर्वस्व लुटाकर वह लाचार इंसान चरित्रहीन हो जाता है। ऐसा न हो इस हेतु सजनों, इस अनमोल मानव चोले के महत्त्व व प्रयोजन को जानो। याद रखो यह जीवन सर्वोच्च पद अर्थात ब्रह्म पद को प्राप्त करने हेतु मिला है। इस पद की प्राप्ति हेतु अपने ख़्याल को चेतन-तत्त्व परमेश्वर के संग जोड़ो ताकि आत्मिक ज्ञान प्राप्त कर बुद्धि विवेकशील व मन-चित्त सचेतन व शान्त बना रहे और निपुणता से इस जीवन खेल को खेलते हुए, जगत विजयी हो, अपने असली घर परमधाम की ओर प्रस्थान कर विश्राम को पाओ।

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